सूरज 
गोलौ अगनी गैसरौ,  भलक पलकतौ भांण। 
नांमी गरमी साजणौ,  रूत-जांमी आरांण।।1।। 
                    गरम तरंगां गिगन में, भाप  सबल बिखराय। 
                      बियौ अरब वों भाग ही,  पूगै पिरथी तांय।।2।। 
                    अलगौ पिरथी सूं अरक, कोस  ज पांव किरोड़। 
                      रिख तप सूं जलमें रसा,  जीव जन्त बेजोड़।।3।। 
                    पूरै धती नूं पहल, गयणमणी  गरमास। 
                      पवन गरम होवै पछै, पूगां  पिरथी पास।।4।। 
                    सालीणी र सदीव री,  दरदरी ज गत दोय। 
                      नितगत करवै दिवसनिस, सालीणी रुत सोय।।5।। 
                    धूरी नित निज घूम धर,  फेरौ हेक लगाय। 
                      करवै रिव रै,  परकमा, मही  बरस हिक मांय।।6।। 
                    नैड़ी घर व्है नभमणी, सीध  किरण संघात। 
                      सूरज रौ औ ही समौ,  उतरायण अखियात।।7।। 
                    अलगी रिव सूं रेय इल,  परभा सीध न पाय। 
                      बगत इसौ रिव रौ बसव,  दिखणायण दरसाय।।8।। 
                    रिव री लागै परकमा, अक्ष  कक्ष लुलताय। 
                      लुलतौ रहवै हिक तरफ, कक्ष  धरा रुत थाय।।9।। 
                    गत आ सुरज गहवरी, अलगी  नैड़ी आय। 
                      फरक पड़ै इण सूं बगत,  रुत औ फरक कहाय।।10।। 
                    रासी नखतर मेल घर, सुरज  तप संजोग। 
                      खट रितुवां मुरध खी, लेवै  आणंद लोग।।11।। 
                    परभा सूरज पैलड़ी,  नमतौ नीर चढाय। 
                      तन निरोग धन पाय नर,  औज जोह इधकाय।।12।। 
                    चांद 
                      सस महताऊ भूमिका,  रूतां बणावण रूप। 
                      वेदां विधू बरवांणियौ, सोम ज पिण्ड सरुप।।13।। 
                    रिव ऊपर परमेसठी, लोक जिकौ कहवाय। 
                      सोम पिण्ड उदगम तणी, मूल  ठौड़ आ थाय।।14।। 
                    थित समसलोकै नांव थी, सरदा  सोम सवाय। 
                      रिव पजन्य अगनीरल्यां, पिरथी बिरखाय पाय।15।। 
                      रिव सूं सीधौ पदारथ, हेक  न धरती आय। 
                      सौर किरण सस मारफत, पूगै  पिरथी तांय।।16।। 
                    कोताई नांही करै,  खटकै लावै खींच। 
                      करै काम चौकी तणौ, चंदौ  आभै बीच।।17।। 
                    लेयर आगै देवणौ,  रिव सूं धरा सचूंप। 
                      सायक रुतां बणाण में, औ ही सस रौ रूप।।18।। 
                    कला चंद घट बढ़ हुवै,  इधका रूप बणाय। 
                      सायक आ गत व्है सिरै,  रूत संचालण मांय।।19।। 
                    रुत 
रुत बिरखा घन बीजली, रुत तप सरदी रूप। 
कबजै जीवां नूं किया, रत गत इला अनूप।।20।। 
                    सिसिर बसंत ग्रीखम अर, मेह सरद हेमन्त। 
                      सीर लिखायौ मांनखौ, खट रुत मुरधर तंत।।21।। 
                    ग्रीखम जेठ बेसाख अर, जोर मास आसाढ। 
                      तावै मुरधर नै तपत, गलवै जीवां गाढ।।22।। 
                    मुरध जीवां मांनखौ, बिरखा रुत व्हालीह। 
                      बरसै सावण भादवौ, रहवै घर आलीह।।23।। 
                    काती अर आसोज में, सरदरात सरसाय। 
                      मिगसर पौ हेमन्त मझ, सरदी घणी सताय।।24।। 
                    माघ अवर फागण अरध, सिसिर करै सतकार। 
                      फागण उतरत चैत सह, करणी मघ रुत कार।।25।। 
                    देखूं जिसड़ौ दाख वूं, रितुवां मुरधर दोर। 
                      कुदरत सूं घण प्रेम मन, मोह लेखणी जोर।।26।। 
                    कांकड़ नूं नित नित निरख, बदियौ मन बिसवास। 
                      आछौ मौ नूं मोह बस, गांवेडू रैवास।।27।। 
                    रुत देवी तो नूं नमौ, राखौ भारत म्हेर। 
                      कोप दिखाणौ नांय कद, खलक राखबा खेर।।28।। 
                    बरसालौ 
                        आड़ंग 
                    आयां नखतर आदरा, आसाढी आड़ंग। 
                      आभौ ऊमस कारमऐ, रेचक बदलै रंग।।29।। 
                    कित्ती मकोड़ा कीड़ियां, दौड़ै होड़ा होड। 
                      आया धरती ऊपरां, कीड़ी नगरौ छोड।।30।। 
                    चिड़ियां न्हावै रेत में, ऊंचा कर कर पंख। 
                      अंग आड़ंग कारमै, खूब उडावै खंख।।31।। 
                    पीतलियौ कालक दहै, कांसी आवै काट। 
                      एवाड़ै री बाड़ चढ़, छीकै ऊभी टाट।।32।। 
                    रंगीलौ किरगांटियौ, घांटी घणी हिलाई। 
                      बिखध झाड़ी कैरटै, बैठै ऊपर आय।।33।। 
                    आगूं आगै मोरिया, गूंजावै नभ बोल। 
                      बाबइयौ बोलर करै, आवण बिरखा कौल।।34।। 
                    सारां सीपी सौर सूं, सरणाटौ सेंजोर। 
                      करती सौर किसारिया, दीपै कांकड़ दोर।।35।। 
                    कांमण आई खालड़ै, घड़ां ऊकलै नीर। 
                      डील अलायां ऊफणै, साल्है तपत सरीर।।36।। 
                    कफ धीमौ पित आफलै, सुसती छाय सरीर। 
                      जीव अमूझै जीवड़ा, देह वात तासीर।।37।। 
                    मावै सास न मांय नै, हांफै बैठा डेण। 
                      दमै रोगियां देखलौ, हालत इसड़ी सेण।।38।। 
                    ओरी सालां ओक दै, मिस आभै आड़ंग। 
                      सड़पां चलै सरीर में, वात रोग बेढंग।।39।। 
                    आवण बिरखा आसमे, ईसौ थयौ आड़ंग। 
                      तीतरपंखी बादली, मंडै माछी अंग।।40।। 
                    ढबगी धजा फरुकती, नहीं हवा रिसकार। 
                      हिलै न पत्ता रूंखड़ां, आड़ंगां इधकार।।41।। 
                    इधका धरती ऊपरां, आड़ंगां अहनांण। 
                      आवण बिरखा आदरां, सांचकला सहनांण।।42।। 
                    मंडाण 
आंथण रा उतराद सूं, ऊठी बिरखा जोर। 
मुधरौ मुधरौ गाजतौ, बीझ झबूकत और।।43।। 
                    ऊंची चढती बीजली, भरै सलावा पूर। 
                      नैड़ी गाज सुणजीतां, आभौ बदलै नूर।।44।। 
                    बादल लारै बरसतौ, आगै कूड़ उड़ांण। 
                      सरू वायरौ सूरियौ, हुयगौ बिरखा लांण।।45।। 
                    कड़ड़ कड़़ड़ चपला करै, धर रधर र घन गाज। 
                      मीठा बोलै मोरिया, आभौ रहियौ छाज।।46।। 
                    लुकिया चंदा जोतकी, आभै बादल ओट। 
                      जल भरिया घन आविया, हरखै करसां होठ।।47।। 
                    भरै सलावा बीजली, कड़ड़ आवाज। 
                      टाबरिया राजी हुवा, किरसाणां रा आज।।48।। 
                    गावेडू टाबर घणा, सुणै हरख घन गाज। 
                      सहरी टाबर चापलै, सुण्या कड़ड़ आवाज।।49।। 
                    मावै गिगन बीजली, घनां गाज घमसांण। 
                      बरसण मुरध ऊपरां, आयौ जबर मंडाण।।50।। 
                    जल सूं भरिया जोर रा, घन जग बड दातार। 
                      भूरा काला घूसरा, आया भली विचार।।61।। 
                    बादल 
                      बादल दीधी प्रेरणा, सुख सम्पत आधार। 
                      करियौ वरणण कविजणां, अपणी बुध अनुसार।।52।। 
                    समझ र बड़कां देव सम, मांन दियौ घम भांत। 
                      भेला राखण बादल,ां पूजा वाली पांत।।53।। 
                    धरती आधौ आध में, घन छावै हरमेस। 
                      तीन फीसदी भाग नित, पावै बिरखा पेस।।54।। 
                    सागै ही जल भाप रै, रज माटी कण लूंण। 
                      मेल अलेखूं आं कणां, जामै बदाल जूंण।।55।। 
                    नद झीलां सरवर उदध, वनापात रै हूंत। 
                      कण पूगा जल भाप मिस, नज नाभिक व्है दूत।।56।। 
                    वायु मंडल ताप सूं, जमै कणां जल भाप। 
बादल बणवै आं वसु, नाभिक तणै मिलाप।।57।। 
                    जल कण अणगिणतीतिका, आपस में टकरीज। 
                      होय'र सेवट हेक जुट, बणवै भारी चीज।।58।। 
                    बिन मिलायं आं जल कणां, रीता बादल थाय। 
                      बिन बरसणिया बदला, किरसाणां कलपाय।।59।। 
                    जुड़ जल कण भारी हुवां, बादल सकै न रोक। 
                      बरसण लागै बादला, इण में रोक न टोक।।60।। 
                    सबसूं नैड़ा गिगन में, लखा बादल लोर। 
                      भारी हलका भांत दुय,ज्यांमै कम जल जोर।।61।। 
                    काली कांठल कलायण, घटाटोप घनघोर। 
                      जल सूं भरिया जोर रा, देखौ बादल दोर।।62।। 
                    भुरजाला ऊपर बहै, आं सूं आभै आव।ष 
                      बरसर'र देवै बादल,ा लाखीणी घर लाब।।63।। 
                    तिण सूं ऊपर तीतर,ी लागी गिगन लिलाड़। 
                      गरमिमा माथै गिगनरै, जलहीणौ कसवाड़।।64।। 
                    भांत भांत रा बादला अडवड़ाट असमांन। 
                      हवा चाल जांण हुवै, घर वैग्यानिक ध्यांन।।65।। 
                    भूरा वसतर पैरियां, धवल मुकुट सिर धार। 
                      देवण लालां दान में, दीखै घन दातार।।66।। 
                    पलक दंत बीजलप्रभा, आबा सांवल अंग। 
                      बहै करंतौ गाज नभ, मसत मेग मातंग।।67।। 
                    तन बल जल भरियौतिकौ, जोर उमावौ जीव। 
                      मिलबा आयौ महल सूं, ज्यूं परदेसी पीव।।68।। 
                    समचौ देवण सायधण, देख बधाी दार। 
                      बक उडिय आगै बहै, लुलताई धन लार।।69।। 
                    बिरखा हंदा बादलां महती थई मठोठ। 
                      आभै जांणक ईसरौ, चुणा दिया गढ कोट।।70।। 
                    आभै टोका ऊमट्या, गाज मांय घमसांण। 
                      दागै तोपां दुरग ज्यूं, बैरी काल भगांण।।71।। 
                    दावड़ बादल धुरदिसा, चालौ करै न चुक। 
                      बडचींता बारातियां, बांण दगण बंदूक।।72।। 
                    चीप्यै दामणियां चमक, तप भा सांवल गात। 
                      घन बहता जांणक गिगन, जोग्यां तणी जमात।।73।। 
                    परबत ज्यूं बदाल प्रभा, छिब नग चपला छाज। 
                      हाक जियां वनराजरी, गिगिन सुणीजै गाज।।74।। 
                    बादलिया आभै बहै, रचियां नव नव रुप। 
                      बालक समझ'र रमतिया, करवै बंट सचूंप।।75।। 
                    म्हारै अस गज और रथ, म्हेल बतावै और। 
                      भाव सलूणा बालकां, दीपै रमतां दोर।।76।। 
                    धूकलिया रमतां धरा, गिगन रमतियां गोर। 
                      चोखा चोखा छांट लै, घन छोकरियां छोर।।77।। 
                    मांड्या बादल मांडणा, कलावंत किर तार। 
                      निरख बादला नैनक्या, लाडै रमतां लार।।78।। 
                    बुध निज सारू बालकां, बणै अनोखा भाव। 
                      न्यारा न्यारा नांव दै, आभै मेघ उमाव।।79।। 
                    बीजली 
धन आवेस घना कमी, घणकर रिण आवेस। 
आंमी सामी आवियां, पड़ै तड़ित पथ पेस।।80।। 
                    आवेसित धन एक दिन, हेकट बादल होय। 
                      रिण आवेसित बादलां, दूजी कांनी जोय।।81।। 
                    आकरसण, पैद हुवै, आं दोनां रै बीच। 
                      दौड़ण लागै बीजली, हवा बीचली खींच।।82।। 
                    गरजण जांण बीजली, इसड़ी चमकै तेज। 
                      देखणियां करणी पड़ै, आंख्यां बंद अजेज।।83।। 
                    पैला तौ दरसै चमक, पछै सुणीजै गाज। 
                      चाल तेज परकास री, ध्वनियां री कम भाज।।84।। 
                    कड़कड़ाट चपलता तणौ, सुणलां वीसूं कोस। 
                      सौ कोसां आधी चकम, देवै हिरदै जोस।।85।। 
                    आवेसित धन तड़ित जुत, धर आकरसण थाय। 
                      कड़ कड़ करती बीजली पड़ै धरा बिच आय।।86।। 
                    बादल चमकै बीजल,ी धण आंगण चम कंत। 
                      होडां होडी हरखवै, जोबनियौ अड़िजंत।।87।। 
                    बादल चमकत बीजली, बिरहण दुखिया भाव। 
                      कड़ड़ कड़ड़, करती थखी, ओरूं मती डराव।।88।। 
                    खिवण बीज खातावली, घन बिच गाज घुरंत। 
                      जांणक म्हेलां जोर में, निरतकियां नाचंत।।89।। 
                    गाज साज घन सांतरी, बिच असनी परकास। 
                      जांणक नाचत नरतकी, भूखण नगझड़ भास।।90।। 
                    ओलमौ 
मेहा माला चमकती, गाजां बाजां साथ। 
मिलबा आयौ मुरधरा, हेत बधायां हाथ।।91।। 
                    सूखी धरा उडीकती, मोड़ौ आयौ मेह। 
                      आखा दैवे ओलमा, गरिमा थां सूं गेह।।92।। 
                    किम कारण ढबिया इता, कुण बिलमाया आप। 
                      ओलूं कर कर मुरधरा, कायी हुई अनाप।।93।। 
                    धणचंगी मराठ घर, आवण दीधौ नांय। 
                      रात सात ढबगौ बठै, आयौ खूब धपाय।।94।। 
                    पछ गुजराती प्रेयसी, अर बागड़ मेवाड़। 
                      गोड़वाड़ री गौरड़ी, आतां करती राड़।।95।। 
                    मन मोटौ तन ऊजलौ, सरमोकण बैवार। 
                      धण मुरधर सी और धर, मिलै न समदां पार।।96।। 
                    औसर 
                      मोटी छांटां मेहलौ, बीजलिया परलाट। 
                      सावण आयौ सोहणौ, थयौ मुरधरा थाट।।97।। 
                    चमक मथारै बीजल,ी धारा धरा धमीड़। 
                      मोटी छांटां मेहरी, मेटण आई पीड़।।98।। 
                    बातां करतौ नेह सूं, मन मे भरतौ मोद। 
                      बरसण लागौमेहलौ, मुरधर भरबा गोद।।99।। 
                    तड़ तड़ लागी बरसबा, रिपिया जितरी छांट। 
                      अड़ड़ अड़ड़ जल ऊललै, डागल सकै न डाट।।100।। 
                    ना मावै परनाल में, मेहौ मुसलधार। 
                      आंगण भरर तज चौक नै, नालां हुवै सवार।।101।। 
                    नालां सूं बाला बणै, खाड़ां खालां जाय। 
                      खादर भरिया मोकला, घड़ी हेक रै मांय।।102।। 
                    भेलौ हुय हुय आवियौ, आछौ जल अंगोर। 
                      तिरियां मिरिायां नाडियां, जीवण पालर जोर।।103।। 
                    ऊंडा डोक ऊठिया, उतरादी दिस आब। 
                      सुर पत गाजै सांतरौ, लोकै देवण लाब।।104।। 
                    काली कांठल कूड़ बिच, पल पल बीज पलक्क। 
                      चालै खाथी चाल सूं, खलकै नीर खलक्क।।105।। 
                    गाजै घुरै गुमेज मे, चमकै बीजल चाव। 
                      जल भरिया सांवल जलद, आगै बधै उमाव।।106।। 
                    ऊंची असनी आयगी, भरै सलावा वोम। 
                      डीगी गाज उरावणी, जबरौ बिरखा जोम।।107।। 
                    मोटी छांटा मेहरी, आ नैड़ी आवाज। 
                      सरड़ाटै आवै सपट, आसा पूरण आज।।108।। 
                    काया तिरसी कलप मन, अणथक करी उडीक। 
सेवट सुणली सायबौ, पूरी सारण पीक।।109।। 
                    सावण वाज्यां सूरियौ, देखौ बिरखा दोर। 
                      मेघ उमावा ऊललै, अंधलाइजै और।।110।। 
                    औसर कीधी आखती, धाराला जड धार। 
                      धुंद सीयालै ज्यूं धरा, अंधलाईलौ आर।।111।। 
                    सौकड़ छांटां वापरै, बोल उठ बरणाट। 
                      आंधी ज्यूं अंध लावइयौ, दरस न दरखत बांट।।112।। 
                    इसड़ी बिरखा ओसरै, धरा सकै ना ढाब। 
                      खल खल जल खाथौ बहे, गुदलकियौ गरकाब।।113।। 
                    भरिया खेत भरेत रा, घणकर तीर घिरंत। 
                      तिरपत व्हेगी मरुधरा, ऊग फसल अड़िजंत।।114।। 
                    बिरखा मगैर बरसती, आय नीर अंगोर। 
                      आड बेय उंता वली, छकिया नाडी छोर।।115।। 
                    चेंडा सूं जल चालियौ, आडां आडां आव। 
                      एक मेक मौरी हुवां, तर भरिया तालाव।।116।। 
                    मुलगौ मौरी माथ कर, फैल्यो जल चौफेर। 
                      जांदा जल पैली जठै, बठै करी घन म्हेर।।117।। 
                    कोड 
जल भिया बादल जबर, जद जोवै किरसांण। 
आसा बांधै आगली, मौजां मसती मांण।।118।। 
                    बरसै बादल बगतसर, सातूं साख सवाय। 
                      करसौ किरसांणी हरख, हिवड़ौ घण हरखाय।।119।। 
                    राय आय जीवण रसा, आही मोटी आस। 
                      जीवण बिरखा जांणलौ, खेती खड़ रै खास।।120।। 
                    बिम बिखा इण मुरधरा, हुवै न दांणौ हेक। 
                      खेती बिरखा रै बसू, इण में मीन न मेक।।121।। 
                    बिरखा देख्यां बीनणी, हुलक हियांली हेत। 
                      परदेसां सूं पीवजी, चालैल घण चेत।।122।। 
                    रग रग में भरियौ रमै, नहे नवोढा नार। 
                      बिरखा देख्यां भीमरै, पिव पुचकार्यांं पार।।123।। 
                    गाजगाज घन कह रह्यौ, असनी चमक कहाय। 
                      मारग बहवै सायबौ, कांमण धीर रखाय।।124।। 
                    ससतौ अन जल बगतसर, भल धंधौ भरपूर। 
                      बिरखा आछी बरसियां, मिल गत रहै मजूर।।125।। 
                    निकमीवाड़ौ नीं रहै, बरस्यां उधम अलेख। 
                      ससतीवाड़ौ वापरै, देनगियां सुख देख।।126।। 
                    बिरखा देख'र बांणियौ, करै मनां में कोड। 
                      विमज वधैला चौगणौ, छेती हाट न छोड।।127।। 
                    सरकारी नोकर सबै, करै मेह रौ कोड। 
                      ससतीवाड़ौ वापरयां, मिटसी महिनै डोढ।।128।। 
                    बिरखा होयां वापरै, ससतापणौ बजार। 
                      सोरी महिना भर सजै, पावै जती पगार।।129।। 
                    मोकल अन जल मांनखै, बोबावै ना कोय। 
                      बिरखा आछी बरसियां, हरख सासकां होय।।130।। 
                    बिरखा आछी बरसियां, लगै समा री नींव। 
                      सूनी फिरती गाय रै, ाय जीव में जीव।।131।। 
                    जोह चराचर जीवड़ा, बिरखा मनड़ै भाय। 
                      बरसालै घन वरसियां, बिगसै घण बणराय।।132।।                    
                    नदी नाला 
नाला उंताला बहै, यूं बिरखा जल पाय। 
धण सूं मिलबा पीव ज्यूं, खाथापेड धराय।।133।। 
                    जल उतरंतौ डूंगरां, इधकौ नालां रूप। 
                      खाला घालै धर खरा, बहता वाला भूप।।134।। 
                    उंतालौ मिलबा नदी, नालौ बहवै खूब। 
                      सजनी सावण तीजरा, ज्यूं साजन मनसूब।।135।। 
                    छोटा मोटा कांकरा, त्रण रज पौधा साथ। 
                      नालां गत खाथा नदी, मिलबा बाथौ बाथ।।136।। 
                    पार करत पग ना टिकै, बहता नालै वेग। 
                      डर लागै वाला तणौ, बरसालै जल तेग।।137।। 
                    सैड़ौ सिरजणहार रौ, माया रौ ना हेर। 
                      धड़ी हेक में होयगौ, जल री जल चोफेर।।138।। 
                    खलल खलल घर खेलतौ, बह रहियौ बेभांण। 
                      नदियनां में नाला मिलै, आवै जबर उफांण।।139।। 
                    थट थंड़ां नाला थया, थाटां पाटां थोग। 
                      थाकलपण तजियौ नदी, जोरवार बण जोग।।140।। 
                    पासै री धर छैड़तौ, तरू तेड़तौ तीर। 
                      जोड़ परकत उधेड़तौ, नदियां बहवै नीर।।141।। 
                    फेनां छाई फूटरी, फाब करै फेताल। 
                      नैड़ा लेय लेपट में, नदी रूप विकराल।।142।। 
                    नद घाटी तज नीछटी, मझ आयां मैदान। 
                      चालै मसती चाल सूं, तरणी गजबण तान।।143।। 
                    डूंगर बहती अचपली, घाटी चंचल पांण। 
                      नद बहती मैदान मे, चतुर कांमणी जांण।।144।। 
                    सीर हुवां बिरखा सबल, महती फसलां माल। 
                      वेरां पांणी वापरै, आयां नदी उछाल।।145।। 
                    सेवौ पांणी वापरै, कूप आस किरसांण। 
                      सेंवज साखा खेत में, व्है नद नालां पांण।।147।। 
                    सरवर 
सावण सरवर सोहणा, तिरियां मिरयां तीर। 
रहै निरोगी देह छिब पीधां पालर नीर।।148।। 
                    ऊंची पालां आंणदी, तकड़ौ खोद तलाव। 
                      जगत परींडौ जांण नै, राखै राख रखाव।।149।। 
                    धाकड़ हरियल दौबड़ी, तर नाडी री तीर। 
                      तर झंगर दरखत तठै, पीवण पालर नीर।।149।। 
                    तापै बैठा तावड़ौ, काचभ नाडी तीर। 
                      माल्है फिरता मींडका, टर टर करै अधीर।।150।। 
                    सारस जोड़ो सातंरो, जीवण नेहां रास। 
                      उण ही सरवरियै ढबै, आया मन बिसवास।।151।। 
                    निकल वड़ै वड़ नीकलै, लगन उदर रै लार। 
                      जचवै गोताखोर ज्यूं, बतकां चिमकी मार।।152।। 
                    ऊभा देवै आभ इम, बांवल नीर मिझांन। 
                      अरक दहै सर ऊभिया, जेम रिखी रिव ध्यान।।153।। 
                    भा बक भुटिया बाट बड़, टींटोडी रीं टींव। 
                      बोलण लागा मींडका, सारस ऊभा सींव।।154।। 
                    छितरू घैघट छाविया, बांवलिया अंगोर। 
                      पीवम नाडी पालरौ, ढूक मथारै ठोर।।155।। 
                    आवै नाडी पीण जल, डांडी पशुवां डार। 
                      ब्हाली लागै बेवता, लहरां वायर लार।।156।। 
                    बेपरां सरवर तणी, बरसालै घण आब। 
                      द्रावां सूं भरियौ थकौ, लै ऐवाल्या लाब।।157।। 
                    भांडौ चरियां माजं जल, भरणो हाथौ हाथ। 
                      मंडै आछी गांव में, पिणघट सिझ्या प्रात।।158।। 
                    वरियां नवला वेस वप, पिणघट सरवर आय। 
                      बिनणियां रौ झूलरौ, सावण सुख सरसाय।।159।। 
                    सिंझ्या सरवर सांचरै, चांपै गायां जोह। 
                      एवड़ बहै उंतावला, एवाड़ा री टोह।।160।। 
                    सरवर भरिया सोहणा, डीगी डीग पाल। 
                      पंछीड़ा कलरव करै, बठा तरां बिचाल।।161।। 
                    तर झंगर अंगोरती, तीरां हरियल दूब। 
                      आडां भुटिया तेरता, भा सरवरदै खूब।।162।। 
                    मुरधर मांही देखलौ, घण नाडी तालाब। 
                      कम बिरखा रै कारणै, रहवै रीता साव।।163।। 
                    जीव जन्त 
माल्है धरा ममोलिया, गहरै रातै रंग। 
जांणक नग लालां जड्या, अवनी वालै अंग।।164।। 
                    छिब छोटा चरणां छकै, अंग रेसमी आब। 
                      मुरधर एम ममोलिया, जांणक चमन गुलाब।।165।। 
                    जल बिरखा पैली जिसौ, अबै न पीवण साव। 
                      अब नांही व्है अलसिया, पदूसण परभाव।।166।। 
                    गूज रियां धर घूमती, पग बीसां रै पांण। 
                      भूर धवल रै मेल सूं, व्हाला दरस बखांण।।167।। 
                    झट पट लाखूं जीवड़ा, हुलसै हाथौ हाथ। 
                      धरती ऊपर ऊपनै, बिरखा रै संघात।।168।। 
                    फटकारा दै फिड़कला जाय दीप री जोत। 
                      लगनी छोड़ै लारना, मिलै न जितरै मौत।।169।। 
                    भांत भांत रा जीब भव, माल्है घांण मथांण। 
                      चौमासै चख चानणौ, पूगै पेख्या पांण।।170।। 
                    औलूं 
                      सिझारै दिन सायधण, ओलूं कंतै आय। 
                      बहवै मारग बालमा, हिचकी मन हरखाय।।171।। 
                    पांणी पी पी धापिया, मन फैर्यौ बत ौर। 
                      तौ ई हिचकी ना थम,ी सिंझारै सेंजोर।।172।। 
                    रेल उतरनै गांव री, पकड़ी मोटर कंत। 
                      मोटी छांटा मेहलौ, तकड़ौ बरसण तंत।।173।। 
                    कंत उतर कांटै करै, मेह ढबण री आस। 
                      ज्यूं ज्यूं बिरखा जोर कर, उललै घण उकरास।।174।। 
                    हरपालै नीं ढबण री, जल ही जल मग भाल। 
                      बालम आया भीजता, भीजी तीज संभाल।।175।। 
                    साजन भीजै सांतरा, पांणी बरसत पंथ। 
                      सिझारै पै कोड सूं, मग गत ज्यूं मैमंत।।176।। 
                    जबर कसीदी जूतियां, भीजी बिरखा नीर। 
                      गिरियै गिरियै जल मगां, लागै उछल सरीर।।177।। 
                    संजोग 
सुणिया पग घण वाजता, फली उडीकण आस। 
बालम दीख्या बारणै, असनी पलक उजास।।178।। 
                    असनी चमकै, गाजधन, पड़ै पनालां पूर। 
                      साजन सजी सेज में, देहां करै न दूर।।179।। 
                    मातै तन खाथै मनां, धाकड़ जीवण धेय। 
                      सजनी सजनी सेज में, लावौ जीवन लेय।।180।। 
                    मैमंती बिरखा मची, सकरी सावण तीज। 
                      रस जोबन रौ लेरह्या, रमणी बालम रीझ।।181।। 
                    मन चंगौ'र निरोग तन, धन धीणौ रैवास। 
                      गौरी आछी रूप गुम, सदा भलौ सहवास।।182।। 
                    बिरखा हेत बधावणी, साखां खेत सवाय। 
                      साजन सजनी साथ हूं, देखौ सावण दाय।।183।। 
                    सावण हरियल सोहणौ, हरियल कांकड़ खेत। 
                      हरियल करियौ सायबौ, हरियल सजनी हेत।।184।। 
                    वनापाती 
                    बांवलिया बरसात में, सांल पेडी आब। 
                      पीत सुमन पानां बिचै, लेवौ निरखण लाब।।185।। 
                    पानां राल निरोग जल, हेटै साखां थट्ट। 
                      खेजड़ियां रा रुंखड़ा, घम बिरखा घैघट्ट।।186।। 
                    छिंवरां आछौ छावियौ, निरखौ हरियल नींम। 
                      जांण गरीबां वासतै, कुदरतदियौ हकीम।।187।। 
                    पलक पांन आछी परसम, पेडी धवल पणेह। 
                      जारक देणी अहरनिस, पीपल जीवां देह।।188।। 
                    बध रोहिड़ौ बोरड़ी, कैर फोग कुसलात। 
                      आछौ फूल्यौ आकड़ौ, भलै राज बरसात।।189।। 
                    झड़ लागी छांटां जबर, नामी सावण नेस। 
                      हरियल देखौ होयगी, सांगोपांग सिरेस।।190।। 
                    बड़लै री छायां भली, पसम थई बड़पांन। 
                      आछी बिरका रौकरै, साखां लुल सनमान।।191।। 
                    जालां गूंदी जोह में, गजब थई घैघट्ट। 
                      झिणझिणयाली जोर में, घण बरसालै थट्ट।।192।। 
                    काचौ आछौ खांण नै, पतफल डाली संग। 
                      घास भुरट की पाकतां, अडियां चिपकै अंग।।193।। 
                    कूकड़लौ गुण कम करै, द्रावां चरबा घास। 
                      डालां पानां डीगलौ, सिर धोलै रातास।।194।। 
                    लगै टगै लेजावणौ, पाड़ खोल माकूल। 
                      लाग्यां राता लेलरू, फलदायी घणफूल।।195।। 
                    बेसक आछी बधणरी, गत घूघरियै घास। 
                      खावण आवण औखरौ, ऊंट बकरियां रास।।196।। 
                    पांनां छिब छोटां छखै, राता सुमन रसाय। 
                      बेकरियौ कम ही बधै, दोरौ खावण दाय।।197।। 
                    थिरा पसरता तांतणा, गाठां जड़ां गडाय। 
                      भलै दूजड़ी भेंसरै, लोग खोल नित लाय।।198।। 
                    द्राव चरंता चटकरै, बड़ बीड़ां उकरास। 
                      जाडौ माठां जोह में, घम झेरणियौ घास।।199।। 
                    बरस सरस करदी बसव, मचियौ मकड़ौ मेह। 
                      खावण रहै उंतावणा पांण आय बित देह।।200।। 
                    लागै सुन्दर लांपलौ, पूरौ पाक्यां पैल। 
                      घास चरण ना कांम रौ, फूंखार्या रौ फेल।।201।। 
                    मगरै ऊभौ मारड़ौ, नांही द्रावां खांण। 
                      कहै बुहारा कांमणी, गो'र बुहारण तांण।।202।। 
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